पक्षपात पक्षपात की बात करें तो
पहले खुद पे ही हम आते हैं ,
अपने भीतर की पक्षपाती
रवैये की व्यथा हम सुनाते है
मन,आत्मा के साथ अकसर
हम पक्षपात कर जाते है
एक की सुनते तो दूसरे की,अनसुनी कर जाते हैं
मन की सुन मनमानी करते,
मन सुख के खातिर खुद के साथ ,
न जाने,कितने को कष्ट दे जाते हैं
आत्मा तड़पती हैं हर बार
कितना कुछ वो हम से कह जाती है
अपनी पोषण के लिए ध्यान लगाओं
सत्यता को तुम अपनाओं,
खुद को खुद ही से मिलाओं
यही गुहार हर बार लगाती है
पर हर बार क्षिणिक ,सुख की खातिर
सिर्फ मन की सुन ,अपने आत्मा के साथ
पक्षपात हम कर जाते हैं
©Ayesha Aarya
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