फ़लक में चाँद है तो होने दो हमें उससे क्या,
वो छत पे आ जाये नज़र उसी को महताब समझूँ।
वैसे हर रोज़ आँखों में उतरते हैं कितने चेहरे,
तेरा चेहरा नज़र आ जाये उसी को ख़्वाब समझूँ।
यहाँ तो हर रोज़ इश्क़ की लहरें बहाने आती है
जो वो डुबाने आए तो उसी को सैलाब समझूँ।
वैसे कितने हैं यार ज़िन्दगी को बिताने के लिए,
अगर वो मिल जाये तो उसी को अहबाब समझूँ।
अहबाब- यार, प्रेमी, दोस्त
©Sonu Yadav
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