White मनुष्य जो हिन्दू धर्म मानता है जिसका जन्म ही | हिंदी Motivation

"White मनुष्य जो हिन्दू धर्म मानता है जिसका जन्म ही ऐसे परीवेश में हुआ है जहां तुलसी का पौधा होता है ,और भगवान उसके प्रारब्ध के दुखों का निवारण भी भेज देता है ,मनुष्य कर्मोंजनित चक्र में चौरासी लाख योनियों तक दुख भोगता है उसे पितृदोष भी लगते हैं तमाम बाधाएं ,संतान जनित कष्ट होते हैं तो वो मंदिरों में भटकता है ,पूजा पाठ सब करता है लेकिन फिर भी उसके कष्ट और पीड़ा दूर नहीं होने का कारण है घर के मुखिया का पथ भ्रष्ट होना ,पितर पक्ष जैसे पावन अवसर ईश्वर ने दिया है तुलसी जैसे पवित्र निधि मिला है जिसके फलित त्वरित फल को जानने के बाद भी मांस ,मदिरा में आसक्त पितृदोष के भागी बनते हैं और पितर रूष्ट होकर घर में सभी को सजा देते हैं क्योंकि क्षमा तो आत्मा तभी करती है जब परिजनों की आत्मा शुद्ध हो शुद्ध मन से तुलसी में अर्पित जल तर्पण अपने मृतकों को स्मरण और भूलों की क्षमा मांगने के बाद सच्चे मन से स्वीकार करते हैं, पितृपक्ष में शराब पीनेवाला पुरूष अपने समस्त परिवार को दुख और पीड़ा के दलदल में धकेलता है। ऐसा पुरूष सिर्फ स्वयं से प्रेम करता है जो मदिरा के वशीभूत होता है ,न उसे पितृजन की परवाह है न बच्चे की और न ही पत्नि के पीड़ा का अनुमान ,ये मानसिक संत्रास से निकलने वाली ऊर्जा उसके घर को जला डालती है। ©Aditi Chouhan"

 White मनुष्य जो हिन्दू धर्म मानता है जिसका जन्म ही ऐसे परीवेश में हुआ है जहां तुलसी का पौधा होता है ,और भगवान उसके प्रारब्ध के दुखों का निवारण भी भेज देता है ,मनुष्य कर्मोंजनित चक्र में चौरासी लाख योनियों तक दुख भोगता है उसे पितृदोष भी लगते हैं तमाम बाधाएं ,संतान जनित कष्ट होते हैं तो वो मंदिरों में भटकता है ,पूजा पाठ सब करता  है लेकिन फिर भी उसके कष्ट और पीड़ा दूर नहीं होने का कारण है घर के मुखिया का पथ भ्रष्ट होना ,पितर पक्ष जैसे पावन अवसर ईश्वर ने दिया है तुलसी जैसे पवित्र निधि मिला है जिसके फलित त्वरित फल को जानने के बाद भी मांस ,मदिरा में आसक्त पितृदोष के भागी बनते हैं और पितर रूष्ट होकर घर में सभी को सजा देते हैं क्योंकि क्षमा तो आत्मा तभी करती है जब परिजनों की आत्मा शुद्ध हो शुद्ध मन से तुलसी में अर्पित जल तर्पण अपने मृतकों को स्मरण और भूलों की क्षमा मांगने के बाद सच्चे मन से स्वीकार करते हैं,
पितृपक्ष में शराब पीनेवाला पुरूष अपने समस्त परिवार को दुख और पीड़ा के दलदल में धकेलता है।
ऐसा पुरूष सिर्फ स्वयं से प्रेम करता है जो मदिरा के वशीभूत होता है ,न उसे पितृजन की परवाह है न बच्चे की और न ही पत्नि के पीड़ा का अनुमान ,ये मानसिक संत्रास से निकलने वाली ऊर्जा उसके घर को जला डालती है।

©Aditi Chouhan

White मनुष्य जो हिन्दू धर्म मानता है जिसका जन्म ही ऐसे परीवेश में हुआ है जहां तुलसी का पौधा होता है ,और भगवान उसके प्रारब्ध के दुखों का निवारण भी भेज देता है ,मनुष्य कर्मोंजनित चक्र में चौरासी लाख योनियों तक दुख भोगता है उसे पितृदोष भी लगते हैं तमाम बाधाएं ,संतान जनित कष्ट होते हैं तो वो मंदिरों में भटकता है ,पूजा पाठ सब करता है लेकिन फिर भी उसके कष्ट और पीड़ा दूर नहीं होने का कारण है घर के मुखिया का पथ भ्रष्ट होना ,पितर पक्ष जैसे पावन अवसर ईश्वर ने दिया है तुलसी जैसे पवित्र निधि मिला है जिसके फलित त्वरित फल को जानने के बाद भी मांस ,मदिरा में आसक्त पितृदोष के भागी बनते हैं और पितर रूष्ट होकर घर में सभी को सजा देते हैं क्योंकि क्षमा तो आत्मा तभी करती है जब परिजनों की आत्मा शुद्ध हो शुद्ध मन से तुलसी में अर्पित जल तर्पण अपने मृतकों को स्मरण और भूलों की क्षमा मांगने के बाद सच्चे मन से स्वीकार करते हैं, पितृपक्ष में शराब पीनेवाला पुरूष अपने समस्त परिवार को दुख और पीड़ा के दलदल में धकेलता है। ऐसा पुरूष सिर्फ स्वयं से प्रेम करता है जो मदिरा के वशीभूत होता है ,न उसे पितृजन की परवाह है न बच्चे की और न ही पत्नि के पीड़ा का अनुमान ,ये मानसिक संत्रास से निकलने वाली ऊर्जा उसके घर को जला डालती है। ©Aditi Chouhan

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