#LabourDay मज़दूर-1
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पसीने से बिल्कुल नहाए हुए हैं
चिथड़ों से तन को सजाए हुए हैं
चेहरे की रंगत बता ये रही है
शायद सुखी रोटी ये खाए हुए हैं
न होश अपना न दुनिया से नाता
बहुत दुर कोई इनका अपना है रहता
उन लोगो की खातीर उन्हीं के लिए
ये लोग दो-चार पैसे बचाए हुए हैं
न सोने को बिस्तर न कोई ठिकाना
अजब हाल में इनका सोना और रहना
बम्बई और दिल्ली में इन सबने मिलकर
सुना है मंजिल पे मंजिल बनाए हुए है
©Qamar Abbas
#Labour_Day2022