"इकतारा जैसा मेंरा मन
सारंग और कंप तन
भीतर से कोमल
बाहर से ठोस
काठ चमड़े से मढ़ा
मानों जीवन इसमें कड़ा
साँचा लकड़ी का सजा
जल जल कर ही ठोस ब ना।
धुन जो निकलें
ह्रदय से होकर
चीख़ पुकार
कभी मधुर मधुर
और
रेश्म क़े धागे
वो ताना बाना डोर का
खीचों तो स्वर निकले
जैसे ठहरति कोई उमंग
इकतारा जैसा मेंरा मन
सारंग और कंप तन
इकतारा जैसा मेरा मन"