चले घर-द्वार राजनीति को अपनाने को। ललक थी अमेठी मे
"चले घर-द्वार राजनीति को अपनाने को।
ललक थी अमेठी में भगवा लहराने को।
पूर्ण हुआ हिदुसिता का ये सपना भी।
पर जान की न्यूछाबर कर बैठे सच्चे हिंदुसितानी
है श्रद्धांजिल उन नेता को
जो जनता हितमे जान दे बैठे अमेठी को।।
विकाश"
चले घर-द्वार राजनीति को अपनाने को।
ललक थी अमेठी में भगवा लहराने को।
पूर्ण हुआ हिदुसिता का ये सपना भी।
पर जान की न्यूछाबर कर बैठे सच्चे हिंदुसितानी
है श्रद्धांजिल उन नेता को
जो जनता हितमे जान दे बैठे अमेठी को।।
विकाश