बस थोड़ा सा सुस्ताए थे,
बच कर दुनियादारी से,
एक पुराना ख़्वाब मिल गया,
आँखों की अलमारी से.
5 Love
चले घर-द्वार राजनीति को अपनाने को।
ललक थी अमेठी में भगवा लहराने को।
पूर्ण हुआ हिदुसिता का ये सपना भी।
पर जान की न्यूछाबर कर बैठे सच्चे हिंदुसितानी
है श्रद्धांजिल उन नेता को
जो जनता हितमे जान दे बैठे अमेठी को।।
विकाश
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