तू अपने अंधेरे से निकल, मैं मेरे अहम से उठू तो ज़ि | हिंदी कविता

"तू अपने अंधेरे से निकल, मैं मेरे अहम से उठू तो ज़िंदगी हो जाए खूबसूरत दोनों के लिए तनहाई के गीत ही क्यू,भीड़ का शोर भी हो प्यार से उबक गया दिल, नफ़रत भी भरपूर हो रोते रोते यार मेरे तुम हसना सीख ही जावोगे घर से चले चलो तुम पहले, पोहंच कही तो जावोगे !"

 तू अपने अंधेरे से निकल, मैं मेरे अहम से उठू
तो ज़िंदगी हो जाए खूबसूरत दोनों के लिए
तनहाई के गीत ही क्यू,भीड़ का शोर भी हो
प्यार से उबक गया दिल, नफ़रत भी भरपूर हो
रोते रोते यार मेरे तुम हसना सीख ही जावोगे
घर से चले चलो तुम पहले, पोहंच कही तो जावोगे !

तू अपने अंधेरे से निकल, मैं मेरे अहम से उठू तो ज़िंदगी हो जाए खूबसूरत दोनों के लिए तनहाई के गीत ही क्यू,भीड़ का शोर भी हो प्यार से उबक गया दिल, नफ़रत भी भरपूर हो रोते रोते यार मेरे तुम हसना सीख ही जावोगे घर से चले चलो तुम पहले, पोहंच कही तो जावोगे !

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