ज़मीं पर पड़े सुखे पत्तों की तरह ही गिरे पड़े हैं, | हिंदी शायरी

"ज़मीं पर पड़े सुखे पत्तों की तरह ही गिरे पड़े हैं, हम आज ज़मीं पर किसी की चाहत में कुछ यूँ हुए की ख़ुद को भी भूल आए हम कहीं पर फ़िर भी नजाने क्यूँ हमें उनसे कोई गीला नहीं वक़्त था जो बदल गया इसमें खता उनकी भी नहीं ©Pavitra Sutparai Magar"

 ज़मीं पर पड़े सुखे पत्तों की तरह
ही गिरे पड़े हैं, हम आज ज़मीं पर

किसी की चाहत में कुछ यूँ हुए की
ख़ुद को भी भूल आए हम कहीं पर

फ़िर भी नजाने क्यूँ हमें 
उनसे कोई गीला नहीं

वक़्त था जो बदल गया
इसमें खता उनकी भी नहीं

©Pavitra Sutparai Magar

ज़मीं पर पड़े सुखे पत्तों की तरह ही गिरे पड़े हैं, हम आज ज़मीं पर किसी की चाहत में कुछ यूँ हुए की ख़ुद को भी भूल आए हम कहीं पर फ़िर भी नजाने क्यूँ हमें उनसे कोई गीला नहीं वक़्त था जो बदल गया इसमें खता उनकी भी नहीं ©Pavitra Sutparai Magar

#Poetry

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