उसने बर्बर होने की परिभाषा बदल दी है
84 साल के बूढ़े को खतरा बता कर
जेल में सजिसन बंद करके यातना देना बर्बर नही लगता
बीमार होने पे सही इलाज न देना भी बर्बर नही है
और बीमारी के ग्राउंड पे बेल न देना भी कानूनी है
बर्बर जालिम ने अपने पक्ष में कुछ भीड़ खड़ी कर ली है
जो उसकी बर्बरता पर जश्न में डूब जाता है।
वो नए भेष धारण करता है
अपनी बर्बर चेहरे पे मुस्कान लिए
अपनी बाजुएँ फड़फड़ाते हुए मोह लेता है
और जकड़ लेता है भोली मानस को
जो जिंदा रहने देने को ही उपकार समझ लेता है
और मुरीद हुआ जाता है उसकी दयालुता पर।
उसने जिंदा होने की विचार से नफरत पाल रखी है
और जंग छेड़ रखी है जिंदगी की वकालत करने वाले के खिलाफ
उसने बर्बर होना बहुत मामूली बना दिया है
अब बर्बरता ही लोकतंत्र का फैसला है।
©Vikram Prashant "Tutipanktiyan "
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