Vikram Prashant

Vikram Prashant "Tutipanktiyan " Lives in New Delhi, Delhi, India

Research Scholar, Poet

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उसने बर्बर होने की परिभाषा बदल दी है 84 साल के बूढ़े को खतरा बता कर जेल में सजिसन बंद करके यातना देना बर्बर नही लगता बीमार होने पे सही इलाज न देना भी बर्बर नही है और बीमारी के ग्राउंड पे बेल न देना भी कानूनी है बर्बर जालिम ने अपने पक्ष में कुछ भीड़ खड़ी कर ली है जो उसकी बर्बरता पर जश्न में डूब जाता है। वो नए भेष धारण करता है अपनी बर्बर चेहरे पे मुस्कान लिए अपनी बाजुएँ फड़फड़ाते हुए मोह लेता है और जकड़ लेता है भोली मानस को जो जिंदा रहने देने को ही उपकार समझ लेता है और मुरीद हुआ जाता है उसकी दयालुता पर। उसने जिंदा होने की विचार से नफरत पाल रखी है और जंग छेड़ रखी है जिंदगी की वकालत करने वाले के खिलाफ उसने बर्बर होना बहुत मामूली बना दिया है अब बर्बरता ही लोकतंत्र का फैसला है। ©Vikram Prashant "Tutipanktiyan "

#कविता #vikram_prashant #tutipanktiyan #Stan_Swamy  उसने बर्बर होने की परिभाषा  बदल दी है
84 साल के बूढ़े को खतरा बता कर
जेल में सजिसन बंद करके यातना देना बर्बर नही लगता
बीमार होने पे सही इलाज न देना भी बर्बर नही है
और बीमारी के ग्राउंड पे बेल न देना भी कानूनी है
बर्बर जालिम ने अपने पक्ष में कुछ भीड़ खड़ी कर ली है
जो उसकी बर्बरता पर जश्न में डूब जाता है।
वो नए भेष धारण करता है
अपनी बर्बर चेहरे पे मुस्कान लिए
अपनी बाजुएँ फड़फड़ाते हुए मोह लेता है
और जकड़  लेता है भोली मानस को
जो जिंदा रहने देने को ही उपकार समझ लेता है
और मुरीद हुआ जाता है उसकी दयालुता पर।
उसने जिंदा होने की विचार से नफरत पाल रखी है
और जंग छेड़ रखी है जिंदगी की वकालत करने वाले के खिलाफ
उसने बर्बर होना बहुत मामूली बना दिया है
अब बर्बरता ही लोकतंत्र का फैसला  है।

©Vikram Prashant "Tutipanktiyan "

आज हिन्द में लाखों कविताएं लिखीं जा रहीं है, पर ये कविता प्यार से उपजी हुई नहीं है और ये बिछड़े प्रेमी का संवाद भी नही है किसी पत्रिका के विशेष अंक में छापी गई नहीं हैं। ये लिखी जा रही है, स्याह तप्ती सड़कों पर खून से लतपथ फोके पड़े पैरों से पसीने से लाचारी से चीख से झंनाहट से भन्नाहट से। पर ये कविता आत्मनिर्भर है, इसने अपने छापे जाने के लिए भरोषा नहीं किया मीडिया पर पत्रकार पर कवि पर कथाकार पर यूनिवर्सिटी के सेमिनार पर, सरकार पर कमिटी की रिपोट पर सरकारी योजनाओं पर प्रथम सेवक पर आम सीएम पर। ये कविता सक्षम है, खोखले आदर्शवादी हिंदुस्तान को आईना दिखाने में, और चीख चीख कर कह रही है हिंदुस्तान की कहानी कह रहीं है अमीरों के भरोसे गरीबों की तकदीर छोड़ देनेवाले नेताओं की कहनीं ग़ांधी के ट्रुस्टीशिप की विनोवा के भूदान की मोदी की अमीरों से अपील की। ये कविता गढ़ रही है, एक हिंदुस्तान की तस्वीर जिसे दिखाने की हिम्मत किसी मीडिया में नहीं थी जिसे छापने की हिम्मत किसी पत्रिका में न थी। जिसे छुपाने की कोशिश की गई, चीखते नारों से विश्वगुरु के खोखले वादों से भव्य इतिहास की आड़ में। और जो दब गई थीं, सपनों की भीड़ में थक कर सों गईं थीं पर जिंदा थीं और आज वो चमक रही है खून सी हिंदुस्तान की सड़क पर पीड़ा लिए पिघल कर लड़ कर सूरज की रोशनी में रात की अन्धेरी में टिमटिमाते तारों में और चीख रही है मौत गहरे सन्नाटों में साजिशों में। ©Vikram Prashant "Tutipanktiyan "

#कविता #Mic  आज हिन्द में
लाखों कविताएं लिखीं जा रहीं है,
पर
ये कविता
प्यार से उपजी हुई नहीं है
और ये
बिछड़े प्रेमी का संवाद भी नही है
किसी पत्रिका के
विशेष अंक में छापी गई नहीं हैं।
ये लिखी जा रही है,
स्याह तप्ती सड़कों पर
खून से लतपथ
फोके पड़े पैरों से
पसीने से
लाचारी से
चीख से
झंनाहट से
भन्नाहट से।
पर
ये कविता
आत्मनिर्भर है,
इसने अपने छापे जाने के लिए
भरोषा नहीं किया
मीडिया पर
पत्रकार पर
कवि पर
कथाकार पर
यूनिवर्सिटी के सेमिनार पर,
सरकार पर
कमिटी की रिपोट पर
सरकारी योजनाओं पर
प्रथम सेवक पर
आम सीएम पर।
ये कविता सक्षम है,
खोखले आदर्शवादी हिंदुस्तान को
आईना दिखाने में,
और चीख चीख कर कह रही है
हिंदुस्तान की कहानी
कह रहीं है
अमीरों के भरोसे
गरीबों की तकदीर छोड़ देनेवाले
नेताओं की कहनीं
ग़ांधी के ट्रुस्टीशिप की
विनोवा के भूदान की
मोदी की
अमीरों से अपील की।
ये कविता
गढ़ रही है,
एक हिंदुस्तान की तस्वीर
जिसे दिखाने की हिम्मत
किसी मीडिया में नहीं थी
जिसे छापने की हिम्मत
किसी पत्रिका में न थी।
जिसे छुपाने की कोशिश की गई,
चीखते नारों से
विश्वगुरु के खोखले वादों से
भव्य इतिहास की आड़ में।
और
जो दब गई थीं,
सपनों की भीड़ में
थक कर सों गईं थीं
पर जिंदा थीं
और
आज
वो
चमक रही है
खून सी
हिंदुस्तान की सड़क पर
पीड़ा लिए
पिघल कर
लड़ कर
सूरज की रोशनी में
रात की अन्धेरी में
टिमटिमाते तारों में
और चीख रही है
मौत
गहरे सन्नाटों में
साजिशों में।

©Vikram Prashant "Tutipanktiyan "

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12 Love

डॉक्टर्स पृथ्वी सूरज में जीवन पाती है अनवरत चक्कर लगाती है बिना रुके बिना थके सबको आसरा देती है मैं चिकित्सक में सूरज और पृथ्वी दोनो देखता हूँ और जीवन आसरा ढूंढती है बिना किसी अपवाद के। ©Vikram Prashant "Tutipanktiyan "

#कविता #DearDoctors  डॉक्टर्स पृथ्वी सूरज में जीवन पाती है
अनवरत चक्कर लगाती है
बिना रुके बिना थके
सबको आसरा देती है
मैं चिकित्सक में सूरज और पृथ्वी दोनो देखता हूँ
और जीवन आसरा ढूंढती है
बिना किसी अपवाद के।

©Vikram Prashant "Tutipanktiyan "

#DearDoctors

13 Love

डस्टबिन को चाहिए कि वो घर के बाहर रहे हालांकि कुछ लोग डस्टबिन किचन, ड्राइंगरूम, बेडरूममें भी रखते है कम से कम डस्टबिन को चक्कर नहीं लगाने चाहिए जहाँ रखा गया है वहीं रहे। डस्टबिन का कर्त्तव्य ©Vikram Prashant "Tutipanktiyan "

#समाज #Mic  डस्टबिन को चाहिए कि वो घर के बाहर रहे
हालांकि कुछ लोग डस्टबिन
 किचन, ड्राइंगरूम, बेडरूममें भी रखते है
कम से कम डस्टबिन को चक्कर नहीं लगाने चाहिए
जहाँ रखा गया है वहीं रहे।

डस्टबिन का कर्त्तव्य

©Vikram Prashant "Tutipanktiyan "

डस्टबिन का कर्तव्य #Mic

7 Love

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दर्द एक छोटी सी कहानी कहती है वो चीखती है वो पुकारती है प्रतिकार करती है और जीत जाती है। ©Vikram Prashant "Tutipanktiyan "

#कविता #vikram_prashant #tutipanktiyan #nojotohindi #droplets  दर्द एक छोटी सी कहानी कहती है
वो चीखती है
वो पुकारती है
प्रतिकार करती है
और जीत जाती है।

©Vikram Prashant "Tutipanktiyan "

दर्द का अंत #nojotohindi #vikram_prashant #tutipanktiyan #droplets

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