जब मन में उमड़ रही विचारों की लहरों से ऊब जाता हूं या कहुँ सांसारिक थकन ज़ेहन में रम जाती है ,तब मैं किताब उठा लेता हूं । किताब उठाकर खुद को हल्का महसूस करता हूं ,लगता है जेठ की दुपहरी में एक भारी बोझा उतारकर किसी पेड़ की छांव में बैठा हूं । पन्ने दर पन्ने पलटने पर खुद की भीतरी यात्रा पर होता हूं जो अलग अलग तरीके से स्वयं से रुबरु होता रहता हूं ।
©Dr.Govind Hersal
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