तू किरदार है तमाशबीन नहीं,
बात सच है तुम्हें यकीन नहीं,
ढूँढता फिर रहा सदा कमियाँ,
यकींनन तुम हुए जहीन नहीं,
समझ है अपना पराये का भी,
दर्द में हूँ मगर ग़मगीन नहीं,
मेरा रखवाला है ऊपरवाला,
अकेला हूँ मगर यतीम नहीं,
मेरे जज़्बात से नहीं खेलो,
आदमी हूँ कोई मशीन नहीं,
बनाई ऐसी है कुदरत जिसने,
कोई शय ख़ुदा से हसीन नहीं,
सुकूँ से ज़िस्म सो रहा 'गुंजन',
कब्र जैसी कोई जमीन नहीं,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
प्रयागराज उ॰प्र॰
©Shashi Bhushan Mishra
#बात सच है तुझे यकीन नहीं#