वक़्त घड़ी की सुईओं के साथ बीत रहा था, और एकाएक मुझे | हिंदी शायरी

"वक़्त घड़ी की सुईओं के साथ बीत रहा था, और एकाएक मुझे एहसास हुआ कि वक्त नूर को बेनूर बना देता है, थोड़े से जख्म को नासूर बना देता है, कौन चाहता है अपनों से दूर रहना, पर वक्त हम को मजबूर बना देता है, silent writer"

 वक़्त घड़ी की सुईओं के साथ बीत रहा था, और एकाएक मुझे एहसास हुआ कि वक्त नूर को बेनूर बना देता है,
थोड़े से जख्म को नासूर बना देता है,
कौन चाहता है अपनों से दूर रहना,
पर वक्त हम को मजबूर बना देता है,


silent writer

वक़्त घड़ी की सुईओं के साथ बीत रहा था, और एकाएक मुझे एहसास हुआ कि वक्त नूर को बेनूर बना देता है, थोड़े से जख्म को नासूर बना देता है, कौन चाहता है अपनों से दूर रहना, पर वक्त हम को मजबूर बना देता है, silent writer

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