"एक कहानी आसमान की"
और चाँद उसके मुँह में घुलता हुआ बताशा
वह घुलता जाता है मुँह में हर रोज़ और टपकती जाती है लार
उसकी माँ त
आसमान एक बच्चा है फैलती जाती है
चाँदनी घुलते-घुलते एक दिन बीत जाता है बताशा
आसमान फिर मचलता है रोता हुआ पाँव पटकता है
फिर कहीं ढूँढ़ती है बताशा- इधर-उधर कोनों-कुचारों में,
जंगल के गुच्छों में, नदी के नीचे, पहाड़ों के पीछे,
समंदर के डिब्बे में आख़िर उसे मिल ही जाता है
तारों भरी थैली में पड़ा एक और बताशा चाँद
जिसे पिछली बार रख दिया था सँभालकर इसीलिए कि पता था
फिर मचलेगा आसमान बताशे के लिए उसकी
एक-एक हरकत से वाक़िफ़ है लाकर रख देती है मुँह में बताशा
इस तरह कुछ रोज़ फिर चुप और शांत रहता है आसमान।
'प्रमोद पाठक'
©Nisha Yadav
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