चेहरे ये मुखौटे हैं,
मुखौटे ही तो चेहरे हैं।
अंदर का राम जला दिया
कैसे उल्टे पड़े दशहरे हैं।
अपनी ही आवाज सुन न पाएं,
पूर्ण रूप से बहरे हैं।
मन की नदी उफान पा ना सकी,
पर हम दिखते कितने गहरे हैं।
ये मुखौटे कोई उतार ना ले,
लगा दिए लाखों पहरें हैं।
चेहरे ये मुखौटे हैं,
मुखौटे ही तो चेहरे हैं।
आयुष्मान खुराना
©Ram Solanki
#mukhota