जिन्होंने बेवजह जलील किया था...
वहीं आज पैर छूने लगे है...
वक्त ये तेरा कौनसा दाव है...
के दुश्मन भी गले मिलने लगे है....
जो टालते थे.. कभी हमे जानबूज कर..
आज मिलने.. बेकरार होने लगे है...
किया था महफ़िल से बेदखल जिन्होंने...
वहीं आज महफ़िल सजाने लगे है..
ज़िद करो तो मेहनत भी करो...
यही सितारे कहने लगे है...
जिस राह से नाकारा गया था..
आज उसिकी मंजिल होने लगे है...
© ओम (जगदिशपुत्र प्रो. अमोल बाविस्कर)
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