समन्दरों में मुआफ़िक़ हवा चलाता है जहाज़ खुद नहीं | English Shayari Vi

"समन्दरों में मुआफ़िक़ हवा चलाता है जहाज़ खुद नहीं चलते ख़ुदा चलाता है ये जा के मील के पत्थर पे कोई लिख आये वो हम नहीं हैं, जिन्हें रास्ता चलाता है वो पाँच वक़्त नज़र आता है नमाज़ों में मगर सुना है कि शब को जुआ चलाता है ये लोग पांव नहीं ज़ेहन से अपाहिज हैं उधर चलेंगे जिधर रहनुमा चलाता है हम अपने बूढे़ चराग़ों पे ख़ूब इतराए और उसको भूल गए जो हवा चलाता है राहत इंदौरी"

समन्दरों में मुआफ़िक़ हवा चलाता है जहाज़ खुद नहीं चलते ख़ुदा चलाता है ये जा के मील के पत्थर पे कोई लिख आये वो हम नहीं हैं, जिन्हें रास्ता चलाता है वो पाँच वक़्त नज़र आता है नमाज़ों में मगर सुना है कि शब को जुआ चलाता है ये लोग पांव नहीं ज़ेहन से अपाहिज हैं उधर चलेंगे जिधर रहनुमा चलाता है हम अपने बूढे़ चराग़ों पे ख़ूब इतराए और उसको भूल गए जो हवा चलाता है राहत इंदौरी

#RecallMemory

समन्दरों में मुआफ़िक़ हवा चलाता है
जहाज़ खुद नहीं चलते ख़ुदा चलाता है

ये जा के मील के पत्थर पे कोई लिख आये
वो हम नहीं हैं, जिन्हें रास्ता चलाता है

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