वो जो रूठा है, मुझसे, जताता भी नहीं
मेरे शिकवों को, गिलों को मनाता भी नहीं
वो जो रूठा है.........
मेरे हर ज़ख्म की हर मर्ज की मरहम है वो
गम तो ये है के कोई दर्द बताता भी नहीं
वो जो रूठा है..........
मेरा हमराज़ भी बन एहसान ना कर रूह पे मेरी
हमसाया है वो मगर हाथ में आता भी नहीं
वो जो रूठा है...........
छोड़कर साथ, तेरा हाथ है, चलना मुश्किल
मंज़िल-ए-मुकाम तक मेरा साथ निभाता भी नहीं
वो जो रूठा है............
मेरे होठों के तबस्सुम की हर लकीर है वो
कैसा बंजारा-ए-दिल है रुलाता भी नहीं
वो जो रूठा है............
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©Dalbir Singh Banjara
रुलाता भी नहीं