मैं दीदार-ए-चांद में रातें ज़ाया करुंगा,
भले वो रात अमावस की और अंधेरा हो तो हो।
तेरे इश्क के कलमें मैं सबको सुनाऊंगा,
भले ज़माने को बुरा लग जाए और बखेड़ा हो तो हो।
मैं आंखें बंद रख कर तेरे ही ख्वाब देखूं बस,
भले दिन चढ़ जाए और सवेरा हो तो हो।
तेरे होने की खुशी तेरे न होने गम से कहीं बढ़कर है,
भले कुछ पल को ही सही मगर मेरा हो तो मेरा हो।
©अम्बुज बाजपेई"शिवम्"
मैं दीदार-ए-चांद में रातें ज़ाया करुंगा,
भले वो रात अमावस की और अंधेरा हो तो हो।
तेरे इश्क के कलमें मैं सबको सुनाऊंगा,
भले ज़माने को बुरा लग जाए और बखेड़ा हो तो हो।
मैं आंखें बंद रख कर तेरे ही ख्वाब देखूं बस,
भले दिन चढ़ जाए और सवेरा हो तो हो।
तेरे होने की खुशी तेरे न होने गम से कहीं बढ़कर है,
भले कुछ पल को ही सही मगर मेरा हो तो मेरा हो।