Truth शिक्षित हो, समझदार भी, कभी सिक्के का दूसरा प

"Truth शिक्षित हो, समझदार भी, कभी सिक्के का दूसरा पहलू भी देखो, तुम्हारी हर बात सही हो, ये ज़रूरी तो नही। झाँककर गरेबाँ कभी अपने ज़मीर को देखो, तुम आज भी वही हो, ये ज़रूरी तो नहीं। कहीं मंदी के दौर में जश्न पर करोड़ों खर्च होते हैं, वहीं ख़ुशहाली चाहे जैसी हो अरबों भूखे सोते हैं। पानी की तरह बहता है धन मंदिरों-मस्ज़िद में, और इंसानियत के लिबाज़ पर बस चिथड़े होते हैं। माना तेरा वजुद पहुँच गया है चाँद पर, मेरी इच्छा अनकही हो, ये ज़रूरी तो नहीं। तुम्हारी हर बात सही हो, ये ज़रूरी तो नही... एकता, समानता और भाईचारे की बातें पुरानी सी लगती हैं, देशप्रेम, संस्कार और दोस्ती बस ज़ुबानी सी लगती है। ना जाने कहाँ खो गई है वो सोने की चिड़िया, मेरी धरती की गर्व गाथा एक कहानी सी लगती है। माना कि बड़े चाव से करते हो दानोंधर्म, हर पाप से पर बरी हो, ये ज़रूरी तो नहीं। तुम्हारी हर बात सही हो, ये ज़रूरी तो नही... रविकुमार ©Ravi Kumar Panchwal"

 Truth शिक्षित हो, समझदार भी, कभी सिक्के का दूसरा पहलू भी देखो,
तुम्हारी हर बात सही हो, ये ज़रूरी तो नही।
झाँककर गरेबाँ कभी अपने ज़मीर को देखो,
तुम आज भी वही हो, ये ज़रूरी तो नहीं।

कहीं मंदी के दौर में जश्न पर करोड़ों खर्च होते हैं,
वहीं ख़ुशहाली चाहे जैसी हो अरबों भूखे सोते हैं।
पानी की तरह बहता है धन मंदिरों-मस्ज़िद में,
और इंसानियत के लिबाज़ पर बस चिथड़े होते हैं।
माना तेरा वजुद पहुँच गया है चाँद पर,
मेरी इच्छा अनकही हो, ये ज़रूरी तो नहीं।

तुम्हारी हर बात सही हो, ये ज़रूरी तो नही...

एकता, समानता और भाईचारे की बातें पुरानी सी लगती हैं,
देशप्रेम, संस्कार और दोस्ती बस ज़ुबानी सी लगती है।
ना जाने कहाँ खो गई है वो सोने की चिड़िया,
मेरी धरती की गर्व गाथा एक कहानी सी लगती है।
माना कि बड़े चाव से करते हो दानोंधर्म,
हर पाप से पर बरी हो, ये ज़रूरी तो नहीं।

तुम्हारी हर बात सही हो, ये ज़रूरी तो नही...

रविकुमार

©Ravi Kumar Panchwal

Truth शिक्षित हो, समझदार भी, कभी सिक्के का दूसरा पहलू भी देखो, तुम्हारी हर बात सही हो, ये ज़रूरी तो नही। झाँककर गरेबाँ कभी अपने ज़मीर को देखो, तुम आज भी वही हो, ये ज़रूरी तो नहीं। कहीं मंदी के दौर में जश्न पर करोड़ों खर्च होते हैं, वहीं ख़ुशहाली चाहे जैसी हो अरबों भूखे सोते हैं। पानी की तरह बहता है धन मंदिरों-मस्ज़िद में, और इंसानियत के लिबाज़ पर बस चिथड़े होते हैं। माना तेरा वजुद पहुँच गया है चाँद पर, मेरी इच्छा अनकही हो, ये ज़रूरी तो नहीं। तुम्हारी हर बात सही हो, ये ज़रूरी तो नही... एकता, समानता और भाईचारे की बातें पुरानी सी लगती हैं, देशप्रेम, संस्कार और दोस्ती बस ज़ुबानी सी लगती है। ना जाने कहाँ खो गई है वो सोने की चिड़िया, मेरी धरती की गर्व गाथा एक कहानी सी लगती है। माना कि बड़े चाव से करते हो दानोंधर्म, हर पाप से पर बरी हो, ये ज़रूरी तो नहीं। तुम्हारी हर बात सही हो, ये ज़रूरी तो नही... रविकुमार ©Ravi Kumar Panchwal

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