खुद को पहचानने में, मैं जो अरसों खो चला। आज से मे

"खुद को पहचानने में, मैं जो अरसों खो चला। आज से मेरे जीवन का एक और साल कम हो चला।। कुछ बुराईयों को त्यागते चला, तो कुछ अच्छाइयों को संजोते चला। यह साल भी किसी सुबह के बाद आने वाली शाम की तरह ढलते चला।। कुछ यादों को दिल से हटाते गया, तो कुछ उम्मीदों के दीप मन में जलाते गया। जब कुछ न सही तो एक अनुभव ही यह साल मुझे देते गया।। ©Vikash Patel"

 खुद को पहचानने में, मैं जो अरसों खो चला। 
आज से मेरे जीवन का एक और साल कम हो चला।।
कुछ बुराईयों को त्यागते चला, तो  कुछ अच्छाइयों को संजोते चला।
यह साल भी किसी सुबह के बाद आने वाली शाम की तरह ढलते चला।।
कुछ यादों को दिल से हटाते गया, तो कुछ उम्मीदों के दीप मन में जलाते गया।
जब कुछ न सही तो एक अनुभव ही यह साल मुझे देते गया।।

©Vikash Patel

खुद को पहचानने में, मैं जो अरसों खो चला। आज से मेरे जीवन का एक और साल कम हो चला।। कुछ बुराईयों को त्यागते चला, तो कुछ अच्छाइयों को संजोते चला। यह साल भी किसी सुबह के बाद आने वाली शाम की तरह ढलते चला।। कुछ यादों को दिल से हटाते गया, तो कुछ उम्मीदों के दीप मन में जलाते गया। जब कुछ न सही तो एक अनुभव ही यह साल मुझे देते गया।। ©Vikash Patel

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