विषधर का विष भी नहीं है उतना
जितना मानव मे समाया है।
कण्ठ में थाम लिए शिव शम्भू
पर मानुष तन ने तो पचाया है।।
पद का मद है मोह भरा
क्षणभंगुर काया का ज्ञान नहीं।
धार तेज कर हथियार रख लिया
जितना की उसका म्यान नहीं।।
मन से मानवता का पाठ
हे नर कभी तुम पढ़ भी लो।।
दूसरों की ही अच्छाई देखकर
खुदपर कभी तुम गढ़ भी लो।।
बाहर की मंडित चकाचौंध देखकर
अंदर के कोलाहल न सुना।।
सर्प कभी अपना न हुआ
जो अपनो को भी स्वयं भुना।
तू नहीं जानता जो हुआ है
ना जान पाएगा जो भी होगा
बस देख रहा अपने पालने की
अरे सब के साथ वही होगा
तर्क करो कुतर्क नहीं
सजग रहो सतर्क वहीं
खुद को खुदा उसी ने कहा है
जिसे नीर क्षीर में फर्क नहीं।।
Aakash Dwivedi ✍️
©Aakash Dwivedi
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