Aakash Dwivedi

Aakash Dwivedi

B.H.U. Varanasi राही 🧡 lover write ✍️

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White l#डर_जाता_हूं_मैं डर जाता हूं मैं छोटी छोटी खुशियों से खुश होने वाला नादां बनकर यूं सबसे खूब ठिठोले करता हूं मगर पराई बातों से और यू अपनों की तानों से बिखर जाता हूं मैं डर जाता हूं मैं।। तुलना खुद से करके किसी और की खुशियां दर्द को दवा बनाकर ऐसे निखर जाता हूं मगर दुनियां की रंगत से कुछ अनचाहे संगत से यूं ठहर जाता हूं मैं डर जाता हूं मैं।। सबकी बातें सुन लेता ना कोई शिकायत करता हूं जब अपने ही न एक रहे रिश्ते नाते ना नेक रहे दिल मे कुटिल खेल को देख ऐसे सिहर जाता हूं मैं डर जाता हूं मैं।। जीवन में दमन दाम का खेल ढलते सूरज से शाम का मेल न शाम सुहानी होती है न रात, रात को सोती है फिर भी प्रात: का मेल अरुण से देख संवर जाता हूं मैं डर जाता हूं मैं।। ~Aakash Dwivedi ✍️ #कविता #राही #अजनबी #अपने #दोस्त ©Aakash Dwivedi

#दोस्त #अजनबी #कविता #शायरी #AakashDwivedi #अपने  White l#डर_जाता_हूं_मैं

डर जाता हूं मैं 
छोटी छोटी खुशियों से 
खुश होने वाला
नादां बनकर यूं सबसे
खूब ठिठोले करता हूं 
मगर पराई बातों से और 
यू अपनों की तानों से 
बिखर जाता हूं मैं 
डर जाता हूं मैं।।
तुलना खुद से करके
किसी और की खुशियां 
दर्द को दवा बनाकर 
ऐसे निखर जाता हूं
मगर दुनियां की रंगत से 
कुछ अनचाहे संगत से 
यूं ठहर जाता हूं मैं 
डर जाता हूं मैं।।
सबकी बातें सुन लेता 
ना कोई शिकायत करता हूं 
जब अपने ही न एक रहे 
रिश्ते नाते ना नेक रहे 
दिल मे कुटिल खेल को देख 
ऐसे सिहर जाता हूं मैं 
डर जाता हूं मैं।।
जीवन में दमन दाम का खेल 
ढलते सूरज से शाम का मेल 
न शाम सुहानी होती है 
न रात, रात को सोती है 
फिर भी प्रात: का मेल अरुण से 
देख संवर जाता हूं मैं 
डर जाता हूं मैं।।

  ~Aakash Dwivedi ✍️ 

#कविता #राही #अजनबी #अपने #दोस्त

©Aakash Dwivedi

White ### समंदर बनकर चाहा था जिसे ताल भी उसने नहीं समझा लहरों सा समा जाने आई थी.. साहिल मिलते ही कहीं का नही समझा। सौंपी थी दिल दु:खाने कि जिम्मेदारी ज़माने से लेकर मगर उसने उसे अपनो की तरह नहीं समझा तव्वसुम बता गई, ये एक हिस्सा था किसी खेल का मुसल्सल खेलति रही आकाश में मिलते हि मुकम्मल उसने    किसी ज़मी का नही समझा, खैर उनकी तमन्नाएं पूरी हुई, हां कुछ जरूरी चीजें अधूरी हुई मुकद्दर है हमारी, हमसे.. हमने इसे कभी किसी और का नही समझा  आना जाना तो कुदरती खेल है तकल्लुफ इतनी सी है हमने सब कुछ समझा उन्हें पर खुदा कसम खुदा नहीं समझा।। Aakash Dwivedi ✍️ ©Aakash Dwivedi

 White ###

समंदर बनकर चाहा था जिसे 
ताल भी उसने नहीं समझा 
लहरों सा समा जाने आई थी.. 
साहिल मिलते ही कहीं का नही समझा।
सौंपी थी दिल दु:खाने कि जिम्मेदारी 
ज़माने से लेकर मगर उसने उसे 
अपनो की तरह नहीं समझा 
तव्वसुम बता गई, ये एक 
हिस्सा था किसी खेल का 
मुसल्सल खेलति रही आकाश में 
मिलते हि मुकम्मल उसने    
किसी ज़मी का नही समझा,
खैर उनकी तमन्नाएं पूरी हुई, हां 
कुछ जरूरी चीजें अधूरी हुई 
मुकद्दर है हमारी, हमसे..
हमने इसे कभी किसी 
और का नही समझा  
आना जाना तो कुदरती खेल है 
तकल्लुफ इतनी सी है 
हमने सब कुछ समझा उन्हें 
पर खुदा कसम खुदा नहीं समझा।।
                
                          Aakash Dwivedi ✍️

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White सावन एक और सावन सुहाना आया किस्सा वही पुराना आया  आते ही उसकी हर,अदाओं ने बरसात कि.. हवाओं की खुशबू भी  पुराने सावन सी .., इस बारिश के साथ हि एक ज़माना आया किस्सा वही पुराना आया अपनो से अपनेपन का सावन गैरों से उलझन का सावन किसानों के खेतों का सावन बारिश के बूंदों का सावन मेढ़क के टर्टर का सावन फिजाओं के सरसर का सावन आया सबके साथ का सावन पर... अभी न आया आपका सावन मोहब्बत के बरसात का सावन बालों पर फिरते हाथ का सावन बारिश में भीगे साथ का सावन तारों बिन आकाश का सावन बातों के विश्वास का सावन आया न कुछ बिन आपके सावन पुराने सावन से सीख कुछ हाथ में रचा रखा है आयेंगे वो दिन भी इसलिए कुछ सावन हाथों में बचा रखा है शायद ये कल्पनाएं हैं और मैंने कल्पनाओं में जीना सीख लिया अब हर सावन के किस्से होंगे जो ज्यादातर मेरे हिस्से होंगे यह सावन भी छट जायेगा बादल खुद मे बट जाएगा पुन: प्रसंग याराना आया किस्सा वही पुराना आया।। एक और सावन सुहाना आया किस्सा वही पुराना आया ।। Aakash Dwivedi ✍️ ©Aakash Dwivedi

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एक और सावन सुहाना आया 
किस्सा वही पुराना आया  
आते ही उसकी हर,अदाओं ने बरसात कि.. 
हवाओं की खुशबू भी  पुराने सावन सी ..,
इस बारिश के साथ हि एक ज़माना आया 
किस्सा वही पुराना आया 
अपनो से अपनेपन का सावन 
गैरों से उलझन का सावन 
किसानों के खेतों का सावन 
बारिश के बूंदों का सावन 
मेढ़क के टर्टर का सावन 
फिजाओं के सरसर का सावन 
आया सबके साथ का सावन 
पर...
अभी न आया आपका सावन 
मोहब्बत के बरसात का सावन 
बालों पर फिरते हाथ का सावन 
बारिश में भीगे साथ का सावन 
तारों बिन आकाश का सावन
बातों के विश्वास का सावन 
आया न कुछ बिन आपके सावन 
पुराने सावन से सीख 
कुछ हाथ में रचा रखा है
आयेंगे वो दिन भी इसलिए 
कुछ सावन हाथों में बचा रखा है 
शायद ये कल्पनाएं हैं और मैंने 
कल्पनाओं में जीना सीख लिया 
अब हर सावन के किस्से होंगे 
जो ज्यादातर मेरे हिस्से होंगे 
यह सावन भी छट जायेगा
बादल खुद मे बट जाएगा 
पुन: प्रसंग याराना आया 
किस्सा वही पुराना आया।। 
एक और सावन सुहाना आया 
किस्सा वही पुराना आया ।।
                           Aakash Dwivedi ✍️

©Aakash Dwivedi

अलंकृत हुई वह उस वंशज से जो देवों की बानी हो मातृभाषा की ताज लिये जो भाषाओं की रानी हो। शब्द,व्याख्या,संवादों से स्वयं को जो परिपूर्ण करे सत्य है उस भाषा की सिद्धी राष्ट्र को सम्पूर्ण करे।। हिन्द की हिन्दी से जहां अखंड राष्ट्र को लाना है सभ्यताओं संस्कृतियों के बल विश्वगुरु कहलाना है विस्मृत हुए,जो बीत गया उस काल को दोहराना है आओ हम संकल्प करें अब हिंदी परचम लहराना है सरल, सुन्दर,सुमनोहर हिन्दी का जो गान करे मातृभूमि की पावनधरा पर स्वयं वो अभिमान करे। दिन,पाख,या मास,वर्ष हो बारम्बार बखान करे हिन्द हिन्दी हिन्दुस्तान अमर रहे भगवान करे।।                                               Aakash Dwivedi ✍️ ©Aakash Dwivedi

#हिन्दी #कहानी #कविता #शायरी #AakashDwivedi #गज़ल  अलंकृत हुई वह उस वंशज से जो देवों की बानी हो
मातृभाषा की ताज लिये जो भाषाओं की रानी हो।
शब्द,व्याख्या,संवादों से स्वयं को जो परिपूर्ण करे
सत्य है उस भाषा की सिद्धी राष्ट्र को सम्पूर्ण करे।।

हिन्द की हिन्दी से जहां अखंड राष्ट्र को लाना है
सभ्यताओं संस्कृतियों के बल विश्वगुरु कहलाना है
विस्मृत हुए,जो बीत गया उस काल को दोहराना है
आओ हम संकल्प करें अब हिंदी परचम लहराना है

सरल, सुन्दर,सुमनोहर हिन्दी का जो गान करे
मातृभूमि की पावनधरा पर स्वयं वो अभिमान करे।
दिन,पाख,या मास,वर्ष हो बारम्बार बखान करे
हिन्द हिन्दी हिन्दुस्तान अमर रहे भगवान करे।।

                     
                         Aakash Dwivedi ✍️

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विषधर का विष भी नहीं है उतना जितना मानव मे समाया है। कण्ठ में थाम लिए शिव शम्भू पर मानुष तन ने तो पचाया है।। पद का मद है मोह भरा क्षणभंगुर काया का ज्ञान नहीं। धार तेज कर हथियार रख लिया जितना की उसका म्यान नहीं।। मन से मानवता का पाठ हे नर कभी तुम पढ़ भी लो।। दूसरों की ही अच्छाई देखकर खुदपर कभी तुम गढ़ भी लो।। बाहर की मंडित चकाचौंध देखकर अंदर के कोलाहल न सुना।। सर्प कभी अपना न हुआ जो अपनो को भी स्वयं भुना। तू नहीं जानता जो हुआ है ना जान पाएगा जो भी होगा बस देख रहा अपने पालने की अरे सब के साथ वही होगा तर्क करो कुतर्क  नहीं सजग रहो सतर्क वहीं खुद को खुदा उसी ने कहा है जिसे नीर क्षीर में फर्क नहीं।। Aakash Dwivedi ✍️ ©Aakash Dwivedi

#कविता #कहानी #शायरी #AakashDwivedi #मानव  विषधर का विष भी नहीं है उतना
जितना मानव मे समाया है।
कण्ठ में थाम लिए शिव शम्भू
पर मानुष तन ने तो पचाया है।।

पद का मद है मोह भरा
क्षणभंगुर काया का ज्ञान नहीं।
धार तेज कर हथियार रख लिया
जितना की उसका म्यान नहीं।।
मन से मानवता का पाठ
हे नर कभी तुम पढ़ भी लो।।
दूसरों की ही अच्छाई देखकर
खुदपर कभी तुम गढ़ भी लो।।
बाहर की मंडित चकाचौंध देखकर 
अंदर के कोलाहल न सुना।।
सर्प कभी अपना न हुआ
जो अपनो को भी स्वयं भुना।
तू नहीं जानता जो हुआ है 
ना जान पाएगा जो भी होगा
बस देख रहा अपने पालने की
अरे सब के साथ वही होगा 
तर्क करो कुतर्क  नहीं 
सजग रहो सतर्क वहीं
खुद को खुदा उसी ने कहा है
जिसे नीर क्षीर में फर्क नहीं।।

                     Aakash Dwivedi ✍️

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