रोज़ रोज़ मिटते है, फिर भी ख़ाक न हुए रोज-रोज मिटते ह

"रोज़ रोज़ मिटते है, फिर भी ख़ाक न हुए रोज-रोज मिटते हैं फिर भी खाक ना हुए। बहुत नहाएे हम अपने अश्कों से फिर भी पाक ना हुए।"

 रोज़ रोज़ मिटते है, फिर भी ख़ाक न हुए रोज-रोज मिटते हैं फिर भी खाक ना हुए।
बहुत नहाएे हम अपने अश्कों से फिर भी पाक ना हुए।

रोज़ रोज़ मिटते है, फिर भी ख़ाक न हुए रोज-रोज मिटते हैं फिर भी खाक ना हुए। बहुत नहाएे हम अपने अश्कों से फिर भी पाक ना हुए।

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