मिले हर जख्म को मुस्कान से सीना नहीं आया, अमरता चा | हिंदी शायरी

"मिले हर जख्म को मुस्कान से सीना नहीं आया, अमरता चाहते थे, पर गरल पीना नहीं आया। तुम्हारी और हमारी दास्तां में फर्क इतना है, तुम्हें जीना नहीं आया, हमें मारना नहीं आया।"

 मिले हर जख्म को मुस्कान से सीना नहीं आया,
अमरता चाहते थे, पर गरल पीना नहीं आया।
तुम्हारी और हमारी दास्तां में फर्क इतना है,
तुम्हें जीना नहीं आया, हमें मारना नहीं आया।

मिले हर जख्म को मुस्कान से सीना नहीं आया, अमरता चाहते थे, पर गरल पीना नहीं आया। तुम्हारी और हमारी दास्तां में फर्क इतना है, तुम्हें जीना नहीं आया, हमें मारना नहीं आया।

मिले हर जख्म को मुस्कान से सीना नहीं आया
#शायरी#जख्म

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