खुदा का तोहफ़ा कहूं या नेमत कहूं। या तुमको मैं खुद | हिंदी Shayari

"खुदा का तोहफ़ा कहूं या नेमत कहूं। या तुमको मैं खुदा की रहमत कहूं। तेरे आने से खुशियों में इजाफा हुआ है। तो क्यों न मैं तुमको बरकत कहूं। कहूं दिल्लगी मैं तुमको , या चाहत कहूं। मोहब्बत हो तुम मैं मोहब्बत कहूं। तू जरिया है मेरे सुकून का फिजा। तो क्यों ना मैं तुझको दिल की राहत कहूं। तू इज्ज़त है मेरी, तेरी इज्जत करू। मुहब्बत को अपनी मैं फितरत कहूं। उसने लिखा साथ तेरा और मेरा मैं क्यों न खुद को खुशकिस्मत कहूं। ©Shah.nawaz"

 खुदा का तोहफ़ा कहूं या नेमत कहूं।
या तुमको मैं खुदा की रहमत कहूं।
तेरे आने से खुशियों में इजाफा हुआ है।
तो क्यों न मैं तुमको बरकत कहूं।

कहूं दिल्लगी मैं तुमको , या चाहत कहूं।
मोहब्बत हो तुम मैं मोहब्बत कहूं।
तू जरिया है मेरे सुकून का फिजा।
तो क्यों ना मैं तुझको दिल की राहत कहूं।

तू इज्ज़त है मेरी, तेरी इज्जत करू।
मुहब्बत को अपनी मैं फितरत कहूं।
उसने लिखा साथ तेरा और मेरा 
मैं क्यों न खुद को खुशकिस्मत कहूं।

©Shah.nawaz

खुदा का तोहफ़ा कहूं या नेमत कहूं। या तुमको मैं खुदा की रहमत कहूं। तेरे आने से खुशियों में इजाफा हुआ है। तो क्यों न मैं तुमको बरकत कहूं। कहूं दिल्लगी मैं तुमको , या चाहत कहूं। मोहब्बत हो तुम मैं मोहब्बत कहूं। तू जरिया है मेरे सुकून का फिजा। तो क्यों ना मैं तुझको दिल की राहत कहूं। तू इज्ज़त है मेरी, तेरी इज्जत करू। मुहब्बत को अपनी मैं फितरत कहूं। उसने लिखा साथ तेरा और मेरा मैं क्यों न खुद को खुशकिस्मत कहूं। ©Shah.nawaz

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