White मैं आश्वस्त
तुम आश्वस्त
सब कुछ लगता है जैसे शांत...शांत ... निश्चिंत
ये शांत सतह ...
प्राण-स्पंदन रहित है ...
जीवन बोध नहीं है इसमें ....
रूका-रूका प्रतिरोध है ये ....
ये शीतलता नहीं जमता हुआ प्रतिरोध है
कोई बात नहीं हो ....
और सम्बन्ध गहराए ....?
प्रश्न है ये ....
नेह-जल नहीं जहाँ ....
चेतन-स्वर नहीं जहाँ ....
प्रकृति कैसी हैं वहाँ ....
ये जमी हुई बर्फ
या तो अंतर उष्णता से पिघले अविलम्ब
या फिर ...
जीवन ढूंढें अपनी कोई नई राह...
सम्बन्ध... सम्बन्ध हो ....
बोझ नहीं हो...
रोष नहीं हो....
आक्रोश नहीं हो...
सिर्फ ख़ुशी हो...ख़ुशी ....
अंदर भी...बाहर भी ....
जो निकले बिना रुके ....
सतह शांत हो अपने स्पंदनों को बताते हुए
©सुरेश सारस्वत