bench जीवन की छांव
संसार की बस्ती में कभी सुबह तो कभी शाम मिला।
माँ, बस तेरे आँचल में ही मुझे सुकून और प्यार मिला।।
उम्मीदें नहीं है अब जिंदगी की किताबों से भी-
पापा को देखो ना, वहीं पूरा खुला आसमान मिला।।
थका-हारा महफ़िल की ख्वाहिशो में;
उम्मीद की लौ और जग वीरान मिला।।
माँ तेरी ममता का प्यासा ये जीवन;
थोड़ा डाँटो ना फिर, उसी में मुझे संसार मिला।।
आज बढ़कर यौवनं भी कल मुरझा जाएगा ;
हे प्रकृति! तूझे क्यों ऐसा ही जहान मिला।
समय को देख भावनाएं न बदले,
इसीलिए, माँ-बाप का तुम्हे एक उपहार मिला।।
माँ अपने चरणों से दो ना फिर तुम आशीष;
पापा से कह दो ना, दो-चार दे दे फिर से खींच।
अब ये जग कभी वीरान तो नहीं ना होगा;
माँ, अब उम्मीदें नहीं, बस तेरी आँचल में ही मेरा छांव होगा।
©Saurav life
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