मुझे लगता था। मैं सीता हूं। मैं राधा हूं। मैं गीता | हिंदी Shayari

"मुझे लगता था। मैं सीता हूं। मैं राधा हूं। मैं गीता हूं। हैवानों की झूठी नगरी में, मैं हवस की एक कविता हूं। लंका सा संसार यहां , रावण से अधिक अत्याचार यहां। मैं नहीं सुरक्षित इस युग में, जननी का अपमान जहां। जिस्म के हर हिस्से में दर्द है मां , तभी मार देते जब मैं कोख में था। आपको पता था ना , ये दुनिया नर्क है मां............ ©एक शायर"

 मुझे लगता था। मैं सीता हूं। मैं राधा हूं। मैं गीता हूं। 
हैवानों की झूठी नगरी में, मैं हवस की एक कविता हूं। 
लंका सा संसार यहां , रावण से अधिक अत्याचार यहां। 
मैं नहीं सुरक्षित इस युग में, जननी का अपमान जहां। 
जिस्म के हर हिस्से में दर्द है मां , 
तभी मार देते जब मैं कोख में था। 
 आपको पता था ना , ये दुनिया नर्क है मां............

©एक शायर

मुझे लगता था। मैं सीता हूं। मैं राधा हूं। मैं गीता हूं। हैवानों की झूठी नगरी में, मैं हवस की एक कविता हूं। लंका सा संसार यहां , रावण से अधिक अत्याचार यहां। मैं नहीं सुरक्षित इस युग में, जननी का अपमान जहां। जिस्म के हर हिस्से में दर्द है मां , तभी मार देते जब मैं कोख में था। आपको पता था ना , ये दुनिया नर्क है मां............ ©एक शायर

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