मुझे लगता था। मैं सीता हूं। मैं राधा हूं। मैं गीता हूं।
हैवानों की झूठी नगरी में, मैं हवस की एक कविता हूं।
लंका सा संसार यहां , रावण से अधिक अत्याचार यहां।
मैं नहीं सुरक्षित इस युग में, जननी का अपमान जहां।
जिस्म के हर हिस्से में दर्द है मां ,
तभी मार देते जब मैं कोख में था।
आपको पता था ना , ये दुनिया नर्क है मां............
©एक शायर
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