God मैंने प्रेम इसलिए चुना! क्योंकि मैं नफ़रत की क़ीमत जानता था...
मैंने प्रेम इसलिए लिखा...क्योंकि मैं स्याई और लहू का अंतर पहचानता था...
मैंने प्रेम की इसलिए पूजा की! क्योंकि मुझे धार्मिक अंधता में गुम हो जाने का डर था...
मैंने प्रेम को जीवन का आधार बना लिया...
क्योंकि मुझे आधारहीन विचारों पर विचलित नहीं होना था...
मैंने प्रेम को नहीं छोड़ा...क्योंकि प्रेम का त्याग
सिर्फ़ कुछ त्याग देना नहीं है.. बल्कि बहुत कुछ नया
पनप जाने की सम्भावना का पैदा हो जाना है...
जैसे..
असत्य, आवेग, अंधकार
नाकामी, नफ़रत, नुकसान
जलन,जहर जिहालत
गुस्सा, गम, गुनाह
और अंत तक चलने वाली एक जंग...
लेकिन मैंने प्रेम को चुना...
और ख़त्म कर दी वो सब संभावनाएं
जो किसी और को ख़त्म करने का
ख़्याल तक पाले!
Deep