"ओम भज, ओम भज
ओम भज, ओम भज
सब रूपों में तूं ही विराजत,
बरसन लागे अमिय रस
ओम भज.....
अकार उकार मकार को समझो
बिन समझे न मिले सच
ओम भज.....
ब्रम्ह स्वरूप है सार सबद को
स्वाद जरा इनका चख
ओम भज.....
मन भटकावत चारो दिशा को
"सूर्य" तनक तो समझ रख
ओम भज.….
©R K Mishra " सूर्य "
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