क्या हो रहा है यार, अब इस ज़माने को।
सभी बस तैयार बैठे हैं, लहू बहाने को।
वो गलियाँ, वो बगीचे, सभी धुंधले हो चले
शहर आ चुके हैं सभी जन, धन कमाने को।
मदद करने को कोई हाथ बढ़े तो संभलों
ले रहें होंगें ये सेल्फियाँ, स्टेटस लगाने को।
मुफ़लिसी-भूखमरी क्या चीज़ है उससे पूछो
जो बेबस है बच्चों को भूखा, सुलाने को।
और मेरे हालात भी अब कुछ ऐसे हो चले हैं
कि मुस्कुराता हूँ, ग़मों का समंदर छुपाने को।।
©abhi sagar
#TiTLi