कतराते हैं अपने ही लोग मुझसे , मेरी असली हैसियत

"कतराते हैं अपने ही लोग मुझसे , मेरी असली हैसियत जानकर । मेहमान भी कभी घर नहीं आते , शायद खपड़े की छत देखकर ।। बोझ लिए फिरता हूँ दर्द , हमेशा दूसरों से बच-बचाकर । करता नहीं कोई मुझसे दोस्ती , मुझे झोपड़ी वाला बताकर ।। तारीफ़ करतें हैं मेरे ही पड़ोसी , मुंह में राम बगल में छूरी रखकर । चुगली करते हैं मेरे ही रिश्तेदार , इस शख्स की गरीबी देखकर ।। रोता रहता हूं अक्सर भीतर से , हंसने वाली दोहरी नकाब पहनकर । ज़रा भी जाहिर नहीं होने देता दर्द , ज़माने की आंखो में धूल झोंककर ।। ©Mayank Kumar 'Aftaab'"

 कतराते हैं अपने ही लोग मुझसे , 
मेरी असली  हैसियत  जानकर ।
मेहमान भी कभी घर नहीं आते ,
शायद  खपड़े की  छत देखकर ।।

बोझ  लिए  फिरता   हूँ  दर्द  ,
हमेशा दूसरों से  बच-बचाकर ।
करता नहीं कोई मुझसे दोस्ती ,
मुझे  झोपड़ी  वाला  बताकर ।।

तारीफ़  करतें  हैं मेरे ही पड़ोसी ,
मुंह में राम बगल में छूरी रखकर ।
चुगली करते हैं मेरे ही रिश्तेदार ,
इस शख्स  की  गरीबी  देखकर ।।

रोता रहता हूं अक्सर भीतर से ,
हंसने वाली दोहरी नकाब पहनकर ।
ज़रा भी जाहिर नहीं होने देता दर्द ,
ज़माने की आंखो में धूल झोंककर ।।

©Mayank Kumar 'Aftaab'

कतराते हैं अपने ही लोग मुझसे , मेरी असली हैसियत जानकर । मेहमान भी कभी घर नहीं आते , शायद खपड़े की छत देखकर ।। बोझ लिए फिरता हूँ दर्द , हमेशा दूसरों से बच-बचाकर । करता नहीं कोई मुझसे दोस्ती , मुझे झोपड़ी वाला बताकर ।। तारीफ़ करतें हैं मेरे ही पड़ोसी , मुंह में राम बगल में छूरी रखकर । चुगली करते हैं मेरे ही रिश्तेदार , इस शख्स की गरीबी देखकर ।। रोता रहता हूं अक्सर भीतर से , हंसने वाली दोहरी नकाब पहनकर । ज़रा भी जाहिर नहीं होने देता दर्द , ज़माने की आंखो में धूल झोंककर ।। ©Mayank Kumar 'Aftaab'

कतराते हैं अपने ही लोग मुझसे ,
मेरी असली हैसियत जानकर ।
मेहमान भी कभी घर नहीं आते ,
शायद खपड़े की छत देखकर ।।

बोझ लिए फिरता हूँ दर्द ,
हमेशा दूसरों से बच-बचाकर ।
करता नहीं कोई मुझसे दोस्ती ,

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