दर्द मिले या फिर ग़म, हम सह लेंगे
ये तन्हाई का आलम, हम सह लेंगे
दूर तुम मुझ से खुश हो! अच्छा है
ये दूरी तो मरते दम, हम सह लेंगे
लौट रहे हो गुलिस्ताँ से आ जाओ
लौटने बाले तेरे सितम, हम सह लेंगे
वादा कर के भूलने बाले भूल गए हैं
भूलने बाले तेरी कसम, हम सह लेंगे
मेरी कश्ती कब डूबी ये मालूम नहीं
मेरे दिल पर छाई मातम,हम सह लेंगे
बारी-बारी सबने ज़ख्म कुरेदे हैं मेरे
मेरे ज़ख्म लगते हैं कम, हम सह लेंगे
©prakash Jha
दर्द मिले या फिर ग़म, हम सह लेंगे
ये तन्हाई का आलम, हम सह लेंगे
दूर तुम मुझ से खुश हो! अच्छा है
ये दूरी तो मरते दम, हम सह लेंगे
लौट रहे हो गुलिस्ताँ से आ जाओ
लौटने बाले तेरे सितम, हम सह लेंगे