आरज़ू है कि उनसे मिलूँ, पर वो ना मिले तो मैं क्या करूँ
जिसे समझा मैं अपना नसीब वही दे दग़ा तो मैं क्या करूँ
एक रात की थी जुस्तजू, वो मिले मुझसे ऐसे हुबहू
मुझे क़फ़स में बिठा कर के वो चले गए तो मैं क्या करूँ
मशहूर वो तो बहुत हुए, मूझे छोड़ कर जब वो गए
जो ज़ख्म मैंने सी लिया वही दरक जाए तो मैं क्या करूँ
दर्द मिले या फिर ग़म, हम सह लेंगे
ये तन्हाई का आलम, हम सह लेंगे
दूर तुम मुझ से खुश हो! अच्छा है
ये दूरी तो मरते दम, हम सह लेंगे
लौट रहे हो गुलिस्ताँ से आ जाओ
लौटने बाले तेरे सितम, हम सह लेंगे
मेरा दिल तो पागल दीवाना है
मेरे घर के सामने ही मैख़ाना हैं
उनसे मिल कर उन्हें दिखाना है
बात दिल की आँखों से समझना है
मैं तो सुनता हूँ आवाज उनकी
ये ग़ज़ल तो सिर्फ इक बहाना है
ज़िन्दगी को हम जफ़ा कहते हैं
मौत को हम वफ़ा कहते हैं
गुमान हो जिसे सूरत पर अपनी
ऐसी सूरत को हम दग़ा कहते हैं
ज़ुल्म सह कर भी जो उफ़ ना करे
ऐसे लोगों को हम ख़ुदा कहते हैं
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here