ये समय रेत की तरह कहीं हाथ से निकल ना जाए, बांट दे

"ये समय रेत की तरह कहीं हाथ से निकल ना जाए, बांट देख रहा हूं जिसकी अफसर बनने की। कहीं समय बहाव में मुझसे बिछड़ ना जाए, डर लगता है अब सरकार में हुए ईस भृष्टाचार से, कहीं वह वर्दी की जगह कफन में लिपटा हुआ मेरे, सामने न आ जाए। लिखना आसान है, सहना मुश्किल। सपना जब टुटता है, तब दृद बहुत होता है। मौत सस्ती लगने लगती है, जिंदगी महंगी। देख सरकार तेरे फरमानो ने क्या कहर मचाया है, कितनी मांओं के लालों को उनके सपनो के साथ मौत की गौद में सुलाया है। ©Shiva hooda"

 ये समय रेत की तरह कहीं हाथ से निकल ना जाए,
बांट देख रहा हूं जिसकी अफसर बनने की।
कहीं समय बहाव में मुझसे बिछड़ ना जाए,
डर लगता है अब सरकार में हुए ईस भृष्टाचार से,
कहीं वह वर्दी की जगह कफन में लिपटा हुआ मेरे,
सामने न आ जाए।
लिखना आसान है,
सहना मुश्किल।
सपना जब टुटता है,
तब दृद बहुत होता है।
मौत सस्ती लगने लगती है, जिंदगी महंगी।
देख सरकार तेरे फरमानो ने क्या कहर मचाया है,
कितनी मांओं के लालों को उनके सपनो के साथ मौत की गौद में सुलाया है।

©Shiva hooda

ये समय रेत की तरह कहीं हाथ से निकल ना जाए, बांट देख रहा हूं जिसकी अफसर बनने की। कहीं समय बहाव में मुझसे बिछड़ ना जाए, डर लगता है अब सरकार में हुए ईस भृष्टाचार से, कहीं वह वर्दी की जगह कफन में लिपटा हुआ मेरे, सामने न आ जाए। लिखना आसान है, सहना मुश्किल। सपना जब टुटता है, तब दृद बहुत होता है। मौत सस्ती लगने लगती है, जिंदगी महंगी। देख सरकार तेरे फरमानो ने क्या कहर मचाया है, कितनी मांओं के लालों को उनके सपनो के साथ मौत की गौद में सुलाया है। ©Shiva hooda

मौत सस्ती , जिंदगी महंगी

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