एक शाम दिलचस्प मंजर के नाम कर आया
चीख उठे सारे ख्वाब जब कुछ काम कर आया
यह बुलंदियों की माला कुर्बान रातों से, जलते धूप
से सीची है, जो आज पूरी आराम-ए-श्याम कर आया
हर निगाहों के नजर से खुदको भूल गया था वो शक्स
आज इतना ऊंचा है की हर निगाह में मकाम कर आया
न कोई आगे न कोई पीछे था वो जो उपर से देख रहा था
वो भी इस कहानी के किरदार को झुकके सलाम कर आया
हर मोड़ सफर का अहम था जिन्दगी के लिए जो हर अधुरा
ख्वाब टूटकर ही 'आगम' को जमाने में, तमाम कर आया
~आगम
©aagam_bamb
#Light