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मेरी तन्हाई का सबब है अपना।
इक तेरे सिवा यहां सब है अपना।
वो भी चुप बैठ गया बुतखाने में।
में समझता था कि रब है अपना।
आप से ख़फा, आप से गिला अरे!
मेरे हुज़ूर ये मसला कब है अपना।
आपको चहते है आपको मानते है।
आपको चाहना ही मतलब है अपना।
मेरी हर धड़कन आपके नाम हो।
जय बस यही चाह है अब अपना।
मृत्युंजय विश्वकर्मा
©mritunjay Vishwakarma "jaunpuri"
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