आंखों की हकीकत से तुम वाकिफ नहीं शायद
तभी तो तुम्हें मेरा शहर पुराना नजर आता है |
जहां मंजर थे वहां खंजर भी थे
साथ चलने का हुनर तुम्हें कहां आता है |
जो लगा रखी है बातों की जड़ी तुमने
उसमें भी झूठ कहा नजर आता है |
अनबन थी तेरे मेरे दरमियां
फिर इसमें तीसरा क्यों नजर आता है |
तुम जैसे फरिश्तों से बचाए हमें खुदा
फरिश्ता भी शर्म के मारे झुका जाता है |
©Chetan Verma
#nojato
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