#OpenPoetry है रण दुर्दम्य , योद् | हिंदी कविता

"#OpenPoetry है रण दुर्दम्य , योद्धा प्रवीण , अद्भुत शर से सज्जित तुरीण । क्षत-विक्षत शव हैं पटे पड़े , मस्तक वीरों के कटे पड़े , कितनों पर मैंने वार किया , कितनों का संहार किया । हे माधव ! इस धर्म युद्ध में मैंने अबतक , धर्म पताका लहराई है , युक्ति से मैंने युद्ध किया है , शौर्य से विजय पायी है । पर एक निहत्थे योद्धा पर , बोलो कैसे मैं प्रहार करूँ , जो रत है अपने रथ में अब , उसका कैसे संहार करूँ । क्या अर्जुन का बल क्षीण हुआ , या आत्मबल संकीर्ण हुआ , जो एक असहाय वीर पर , मैं अपनी शक्ति दिखलाऊँगा । विजय भी हो जाए माधव , मैं कायर ही कहलाऊँगा । हे भगवन ! तुमने ही तो मुझको , धर्म मार्ग बतलाया था , अपने सामर्थ्य पर विश्वास करूँ , ये पाठ मुझे सिखलाया था । अब तुम ही मुझको धर्म से , विरत कैसे कर सकते हो , एक शस्त्रहीन पर शस्त्र उठाऊँ , ये कैसे कह सकते हो ? बोलो ना माधव चुप क्यों हो , शंका का समाधान करो , अंधकार में डूब रहा , आलोकित मेरे प्राण करो ।"

 #OpenPoetry  है रण दुर्दम्य ,
                योद्धा प्रवीण ,
               अद्भुत शर से सज्जित तुरीण ।
               क्षत-विक्षत शव हैं पटे पड़े ,
               मस्तक वीरों के कटे पड़े ,
               कितनों पर मैंने वार किया ,
               कितनों का संहार किया ।
हे माधव ! इस धर्म युद्ध में मैंने अबतक ,
               धर्म पताका लहराई है ,
               युक्ति से मैंने युद्ध किया है ,
               शौर्य से विजय पायी है ।
               पर एक निहत्थे योद्धा पर ,
               बोलो कैसे मैं प्रहार करूँ ,
               जो रत है अपने रथ में अब ,
               उसका कैसे संहार करूँ ।
               क्या अर्जुन का बल क्षीण हुआ ,
               या आत्मबल संकीर्ण हुआ ,
               जो एक असहाय वीर पर ,
               मैं अपनी शक्ति दिखलाऊँगा ।
               विजय भी हो जाए माधव ,
               मैं कायर ही कहलाऊँगा ।
हे भगवन ! तुमने ही तो मुझको ,
                 धर्म मार्ग बतलाया था ,
                 अपने सामर्थ्य पर विश्वास करूँ ,
                 ये पाठ मुझे सिखलाया था ।
                 अब तुम ही मुझको धर्म से ,
                 विरत कैसे कर सकते हो ,
                 एक शस्त्रहीन पर शस्त्र उठाऊँ ,
                 ये कैसे कह सकते हो ?
                 बोलो ना माधव चुप क्यों हो ,
                 शंका का समाधान करो ,
                 अंधकार में  डूब रहा ,
                 आलोकित मेरे प्राण करो ।

#OpenPoetry है रण दुर्दम्य , योद्धा प्रवीण , अद्भुत शर से सज्जित तुरीण । क्षत-विक्षत शव हैं पटे पड़े , मस्तक वीरों के कटे पड़े , कितनों पर मैंने वार किया , कितनों का संहार किया । हे माधव ! इस धर्म युद्ध में मैंने अबतक , धर्म पताका लहराई है , युक्ति से मैंने युद्ध किया है , शौर्य से विजय पायी है । पर एक निहत्थे योद्धा पर , बोलो कैसे मैं प्रहार करूँ , जो रत है अपने रथ में अब , उसका कैसे संहार करूँ । क्या अर्जुन का बल क्षीण हुआ , या आत्मबल संकीर्ण हुआ , जो एक असहाय वीर पर , मैं अपनी शक्ति दिखलाऊँगा । विजय भी हो जाए माधव , मैं कायर ही कहलाऊँगा । हे भगवन ! तुमने ही तो मुझको , धर्म मार्ग बतलाया था , अपने सामर्थ्य पर विश्वास करूँ , ये पाठ मुझे सिखलाया था । अब तुम ही मुझको धर्म से , विरत कैसे कर सकते हो , एक शस्त्रहीन पर शस्त्र उठाऊँ , ये कैसे कह सकते हो ? बोलो ना माधव चुप क्यों हो , शंका का समाधान करो , अंधकार में डूब रहा , आलोकित मेरे प्राण करो ।

#OpenPoetry #व्यथा #अर्जुनकृष्णसंवाद #कर्णवध

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