"रहता बस एक ही धुन सवार मुझमें सुबह व शाम है
गर जो दिन को सियाम(व्रत) तो फिर रात को क़याम है
है मेरे दिल में कितनी उलफ़त-ए-रसूल ये मुझसे ना पूछिये
क्योंकि ये मेरे दिल व जान भी मेरे नबी के नाम है
मो. इक्साद अंसारी"
रहता बस एक ही धुन सवार मुझमें सुबह व शाम है
गर जो दिन को सियाम(व्रत) तो फिर रात को क़याम है
है मेरे दिल में कितनी उलफ़त-ए-रसूल ये मुझसे ना पूछिये
क्योंकि ये मेरे दिल व जान भी मेरे नबी के नाम है
मो. इक्साद अंसारी