" माँ का आदेश था कभी छूना ना आग,
पर बच्चा मनमौजी तैश जब खा गया ।
माँ की फिक्र को कैद मान बैठा वो पगला,
जब दिल-ऐ-नादान उसका रोशनी पर आ गया ।
कोई कैसे छीन सकता ये आजादी उसकी,
फैसला लेने का अपना भूत उसपे छा गया ।
समझ पाता जब तक भेद फिक्र और कैद में,
आग छूते ही चंद लम्हों में खाक में समा गया । "
©PRANAV PAWAR
"फिक्र और कैद"
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