ज़मीं से फ़लक तक, जमी से फलक तक आंख से पलक तक झांकी | हिंदी कविता
"ज़मीं से फ़लक तक, जमी से फलक तक आंख से पलक तक झांकी से झलक तक खाकी से वर्दी तक गर्मी से सर्दी तक और उत्तर से दक्षिण तक तुम ही तुम हो तुम ही तुम तुम ही तुम हो"
ज़मीं से फ़लक तक, जमी से फलक तक आंख से पलक तक झांकी से झलक तक खाकी से वर्दी तक गर्मी से सर्दी तक और उत्तर से दक्षिण तक तुम ही तुम हो तुम ही तुम तुम ही तुम हो