आज़ादी दिवस दिन आज़ादी का कहा आसानी से आया था सन 5 | हिंदी Poetry

"आज़ादी दिवस दिन आज़ादी का कहा आसानी से आया था सन 57 से 47 तक बादल संग्राम का छाया था हुए कुर्बान मां भारती पर वीर ऐसे बलिदानी थे हजारों माँओ ने अपना जिगरी लाल गवाया था कैसे करूं बयां हाल ए मंजर क्या रहा होगा मानो घर-घर में नदियों सा ही लहू बहा होगा बिन राखी सुनी रही होगी कलाई भाइयों की, छूटा कुमकुम माथे से, मंगलसूत्र उतारा होगा। ©माही मुन्तज़िर"

 आज़ादी दिवस

दिन आज़ादी का कहा आसानी से आया था 
सन 57 से 47 तक बादल संग्राम का छाया था 
हुए कुर्बान मां भारती पर वीर ऐसे बलिदानी थे
हजारों माँओ ने अपना जिगरी लाल गवाया था

 कैसे करूं बयां हाल ए मंजर क्या रहा होगा 
मानो घर-घर में नदियों सा ही लहू बहा होगा 
बिन राखी सुनी रही होगी कलाई भाइयों की,
छूटा कुमकुम माथे से, मंगलसूत्र उतारा होगा।

©माही मुन्तज़िर

आज़ादी दिवस दिन आज़ादी का कहा आसानी से आया था सन 57 से 47 तक बादल संग्राम का छाया था हुए कुर्बान मां भारती पर वीर ऐसे बलिदानी थे हजारों माँओ ने अपना जिगरी लाल गवाया था कैसे करूं बयां हाल ए मंजर क्या रहा होगा मानो घर-घर में नदियों सा ही लहू बहा होगा बिन राखी सुनी रही होगी कलाई भाइयों की, छूटा कुमकुम माथे से, मंगलसूत्र उतारा होगा। ©माही मुन्तज़िर

#IndependenceDay

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