White इतने ऊंचे ऊंचे पर्वत, इतनी नीची नदिया क्यों | हिंदी Poetry Video

"White इतने ऊंचे ऊंचे पर्वत, इतनी नीची नदिया क्यों कल ही छोड़ा साथ तुम्हारा, लगती जैसे सदियां क्यों, आओ ! हमारे पास रहो, जैसे बादल से पर्वत मिलते है, मैं बन कींच,कमल तुम बनो, चलो साथ में खिलते है, दिन में रोज उजाला है, पर अंधकार में रतियाँ क्यों, इतने ऊंचे ऊंचे पर्वत, इतनी नीची नदिया क्यों..... तुमको वन उपवन समझूं खुद को बारिश की बूंदे इतना प्रेम समर्पण है, फिर गहराई में क्यों कूदे सारे वृक्ष बुजुर्गो ने, हिल-हिल कर सहमति दे डाला, सबने सहज रूप स्वीकार किया, फिर पीछे इतनी बतिया क्यों इतने ऊंचे ऊंचे पर्वत, इतनी नीची नदिया क्यों... ©अनुज "

White इतने ऊंचे ऊंचे पर्वत, इतनी नीची नदिया क्यों कल ही छोड़ा साथ तुम्हारा, लगती जैसे सदियां क्यों, आओ ! हमारे पास रहो, जैसे बादल से पर्वत मिलते है, मैं बन कींच,कमल तुम बनो, चलो साथ में खिलते है, दिन में रोज उजाला है, पर अंधकार में रतियाँ क्यों, इतने ऊंचे ऊंचे पर्वत, इतनी नीची नदिया क्यों..... तुमको वन उपवन समझूं खुद को बारिश की बूंदे इतना प्रेम समर्पण है, फिर गहराई में क्यों कूदे सारे वृक्ष बुजुर्गो ने, हिल-हिल कर सहमति दे डाला, सबने सहज रूप स्वीकार किया, फिर पीछे इतनी बतिया क्यों इतने ऊंचे ऊंचे पर्वत, इतनी नीची नदिया क्यों... ©अनुज

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