हँसता हुआ देखा तुमने ये चेहरा,
चमकीली आँखों में खुशियों का पहरा,
बच्चों की टोली में मेरी ठिठोली,
गुड़िया है अब भी वो मेरी सहेली।
तितली के पीछे तो मैं ही थी भागी,
दादी के किस्से को सुनने को जागी,
कंधों पे दादा के करती सवारी,
दादी बचाती माँ करती पिटाई
इक मोड़ जीवन में मेरे था आया,
अपने रहें खुश ये मन को था भाया,
मैं रखने लगी सबको ऊपर स्वयं से,
कहीं खो गई मैं ये निजता वचन से।
रहा है मेरा प्रेम सबके लिए ही,
क्या पुष्प क्या कंटकों के लिए भी,
मांग रही तुमसे सारी बलाएं
आँचल सितारे तले मैं बिछाए।
तस्वीर को देखूं तेरी मैं जब भी
अश्रु ही झरते हैं नयनों से अब भी
हर पल अधूरा मेरा प्रिय तुझ बिन,
कटते हैं कैसे बताऊं मेरे दिन
किसी ने नहीं देखी खामोशी मेरी,
मेरा वो पहलू भी काफी सरल है,
अमृत सुधा जैसे प्रेम मेरा है
घृणा जैसे मानो ये नीला गरल है।
कहती हूँ अपने मैं प्यारे पिता से
अपने शरण में मुझे ले चले वो ,
मेरा ये सारा मिले प्रेम उनको
हृदय जिनका मेरी ही भाँति सरल हो।।
©रागिनी झा "मनु" 🦚
©स्वरस "रागिनी"
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