बचपन में जितनी बेसब्री से चाहत रही बड़े होने की उत | हिंदी शायरी

"बचपन में जितनी बेसब्री से चाहत रही बड़े होने की उतनी शिद्दत से तलब लगती है फिर बचपन में जाने की मुश्किलों से दो दो हाथ करती हुई हौसलों की किश्ती कभी भंवर में उलझती कभी किनारे पर अटकती है जल्दबाजी में खो कर बचपना हुआ नहीं कुछ हासिल जिम्मेदारी की धूप ही झुलसाने ही लगती है आखिर बबली गुर्जर ©Babli Gurjar"

 बचपन में जितनी बेसब्री से चाहत रही बड़े होने की
उतनी शिद्दत से तलब लगती है फिर बचपन में जाने की
मुश्किलों से दो दो हाथ करती हुई हौसलों की किश्ती
 कभी भंवर में उलझती कभी किनारे पर अटकती है 
जल्दबाजी में खो कर बचपना  हुआ नहीं कुछ हासिल 
जिम्मेदारी की धूप ही झुलसाने ही लगती है आखिर
बबली गुर्जर

©Babli Gurjar

बचपन में जितनी बेसब्री से चाहत रही बड़े होने की उतनी शिद्दत से तलब लगती है फिर बचपन में जाने की मुश्किलों से दो दो हाथ करती हुई हौसलों की किश्ती कभी भंवर में उलझती कभी किनारे पर अटकती है जल्दबाजी में खो कर बचपना हुआ नहीं कुछ हासिल जिम्मेदारी की धूप ही झुलसाने ही लगती है आखिर बबली गुर्जर ©Babli Gurjar

धूप @Ravi Ranjan Kumar Kausik @Neel @Lalit Saxena @R... Ojha @Kiran kumari @Bhardwaj Only Budana

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