आदमी
पत्थरो के शहर में
धूल मिट्टी फांकते फांकते
भूख की ललक इतनी बढ़ी,,,
हरयाली गुल हो गई,
जंगल निगल गया आदमी,,,
पत्थरों के कारोबार में
कहीं पत्थर कूटते कूटते
कहीं तोड़ते तोड़ते
और पत्थर पूजते पूजते
पत्थर हो गया आदमी,,,!
पत्थरों की चिकनाहट चमक दमक से
सीन चिरता रहा पत्थरों का,
पथराई आंखों से निहारता
बेटे का इंतज़ार ही रह गया बेचारा आदमी,,,!
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डॉ. कमल के .प्यासा।
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